“जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा है। इस। डिजिटल युग में भी डाक्टरों का मरीजों के लिए लिखा गया दवाईयों का नुस्खा सुपाव्य नहीं हुआ। डाक्टर आज भी मरीजों के लिए लिखे गए नुस्खे में घसीटा मारते हैं। पढ़ने में मुश्किल डाक्टरों की इस हैंडराइटिंग के चलते अमेरिका में हर साल 7000 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, यही नहीं करीब 15,00,000 लोग इस अपठनीय हैंडटाइटिंग के चलते गलत दवाईयों के शिकार होकर कई तरह से बीमार हो जाते हैं, कई घायल हो जाते हैं और कई तो अपाहिज तक हो जाते हैं। लेकिन रुकिये, यह भयावह समस्या अकेले अमरीका की नहीं है, भारत जैसे देश में भी आम लोग डाक्टरों की इस खामी की सजा भुगतते हैं। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) के जरिये सभी मेडिकल सेंटर, निजी क्लीनिक, मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों को सर्कुलर जारी कराकर निर्देश दिया है कि डाक्टरों को साफ लिखावट में ही प्रिस्क्रिप्शन लिखना होगा।
साथ ही उन्हें मेडिको लीगल रिपोर्ट के लिए टाइप किए गए फॉर्म का ही उपयोग कटना होगा। साल 2020 में उड़ीसा हाईकोर्ट ने भी डाक्टरों की अपठनीय लिखावट पर नाराजगी जतायी थी, तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस संजीव कुमार पाणिगृही ने अगस्त 2020 में डाक्टरों को निर्देश दिया था कि उनके लिखे गए प्रिस्क्रिप्शन की हैंडराइटिंग पठनीय होनी चाहिए। दरअसल कोर्ट को ऐसा करने के लिए उस समय बाध्य होना पड़ा, जब एक सुनवाई के दौरान जस्टिस एस. के पाणिगृही को एक पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने में बेहद दिक्कत हुई। वास्तव में सीबीआई ने बंद लिफाफे में एक व्यक्ति की सांप काटने की वजह से हुई मौत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट अदालत में पेश की थी, क्योंकि मृतक व्यक्ति के पिता ने अपने बेटे की मौत पर मुआवजे के लिए याचिका दायर की थी, जिसे तहसीलदार ने खारिज कर दिया था।
इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट को जब माननीय न्यायाधीश ने पढ़ने की कोशिश की तो उन्हें असमर्थतता हाथ लगी। नतीजतन उन्होंने डाक्टरों के प्रिस्क्रिप्शन के संबंध में अपठनीय हैंडराइटिंग को लेकर नाराजगी जताई थी और इसे बेहतर बनाने के निर्देश जारी किए थे। दुनिया में करीब 400 सालों से आधुनिक किस्म की चिकित्सा व्यवस्था जाटी है और कटीब 250 सालों से मौजूदा किस्म की एलोपैथी व्यवस्था मौजूद है। निःसंदेह यह लगातार विकसित और बेहतर हो रही है, मगर हैरानी की बात ये है कि दवाईयों और मरीजों को बीमारी के दौरान विभिन्न तरह के परहेजों हेतु लिखे गए डाक्टरी नुस्खे हमेशा से अपठनीय होते रहे हैं। चूंकि एक जमाने में स्याही में कलम डुबोकर ये नुस्खे लिखे जाते थे, उस समय स्याही के कागज में फैल जाने की समस्या भी हुआ करती थी, इस कारण भी ये नुस्खे कई बार अपठनीय हो जाते थे।
लेकिन जब बॉल पेन आने लगे और गीली स्याही की लिखने के मामले में अनिवार्यता नहीं रही, तो भी डाक्टरी नुस्खों में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। हैटानी की बात तो ये है कि आज के दौट में जब ज्यादातर दफ्तर पेपटलेस हो चुके हैं, साटा कामकाज डिजिटल हो गया है, लोग मोबाइल और टैंप का इस्तेमाल टैक्स्ट मैसिजिंग के लिए करते हैं, उस दौर में भी डाक्टर आमतौर पर अपने मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन हाथ से ही लिखते हैं और उनकी राइटिंग की दरिद्रता और अपठनीयता के किस्से अभी भी जारी हैं। हालांकि समय समय पर विभिन्न अदालतें डाक्टरों को साफ सुथरा नुस्खा लिखने के निर्देश देते रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्या बात है डाक्टर अपनी इस कमी में किसी तरह का सुधार करने को ही तैयार नहीं हैं।
हालांकि अपने देश में अमेरिका की तरह कोई ऐसा शोध तो नहीं हुआ, जिससे स्पष्ट तौटपर यह जाना जा सके कि डाक्टरों की इस अपठनीय हैंडराइटिंग के चलते हर साल कितने लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं और कितनों को इससे दूसरी मेडिकल परेशानियों का सामना करना पड़ता है। फिर भी अगर लोगों से आप व्यक्तिगत तौटपर इस संबंध में अनुभव पूछें तो ज्यादातर मरीजों के अनुभव डरावने हैं। फिर भी हिंदुस्तान में न तो टाज्य व केंद्र सरकारें या डाक्टरों के संगठन ही इस समस्या को लेकर कोई गंभीरता दर्शाते हैं।
जबकि अदालतें समय समय पर एक नहीं कई बार कह चुकी हैं कि डाक्टरों को प्रिस्क्रिप्शन लिखते समय अपनी जिगजैग हैंडराइटिंग से बाज आना चाहिए। कई बार तो देश की अदालतें इस संबंध में नाराज होते हुए डाक्टरों को लताड़ भी लगाया है
और यह भी कहा कि टेढीमेढ़ी और अपठनीय हैंडराइटिंग में लिखना उनके लिए फैशन हो गया है। अदालतों की इन टिप्पणियों और निर्देशों के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी डाक्टरों को न सिर्फ मौखिक निर्देश दिए हैं बल्कि उन्हें एक गाइडलाइन भी जाटी की है, जिसमें साफ कहा गया है कि इलाज के लिए लिखे गए प्रिस्क्रिप्शन में हमेशा कैपिटल लेटर इस्तेमाल कटना होगा।
यही नहीं एमसीआई और अदालतों ने डाक्टरों को यह भी निर्देश दिया है कि वो लिखी गई दवाईयों को अपने सामने ही मटीजों से या मरीजों की देखरेख कटने वाले परिजनों से पढ़वाकर देख लें, अगर वो गलत पढ़ रहे हों तो उन्हें समझाएं कि सही क्या है। मगर सवाल है आखिर धरती के भगवान कहे जाने वाले डाक्टर खराब हैंडटाइटिंग में क्यों लिखते हैं? जब सदियों से उनकी इस हैंडटाइटिंग को कोसा जा रहा है, फिर भी आखिर क्या बात है कि उनकी हैंडराइटिंग सुधरने का नाम ही नहीं ले रही? यही नहीं इस संबंध में तरह तरह की बातें भी प्रचलित हैं। डाक्टरों की खराब हैंडटाइटिंग के लिए जो एक आम धारणा बनी हुई है और जिसे बनवाने में खुद डाक्टरों ने भी मदद की है, वह यह है कि माना जाता है।
कि डाक्टरों की हैंडराइटिंग इसलिए खराब होती है, क्योंकि वे जल्दी में लिखते हैं, ज्यादातर डाक्टर ड्यूटी के समय थके होते हैं, क्योंकि भारत में डाक्टरों पर काम का भारी बोझ है। साथ ही यह भी माना जाता है कि लगातार बदलते मेडिकल टर्म और जटिल भाषा के कारण भी विभिन्न भाषाभाषी डाक्टर आमतौर पर अंग्रेजी की दवाओं को लिखते समय या मरीजों के लिए इलाज के दौरान विभिन्न तरह के परहेजों को लिखते समय भाषाई असमर्थतता और असहजता के शिकार होते हैं। सबसे खास जो वजह डाक्टरों की खराब हैंडराइटिंग के लिए गिनाई जाती है, वह यह है कि माना जाता है कि उनके हाथ की मांसपेशियां बहुत थकी होती हैं, इस वजह से पठनीय भाषा में लिख नहीं पाते। एक सर्वेक्षण के मुताबिक, जो दुनिया के कई देशों में हुआ है, डाक्टर अपनी खराब लिखावट को लेकर यह नहीं मानते कि यह उनकी एक बड़ी खामी है।