18वीं लोक सभा की पहली बैठक 24 जून से 3 जुलाई तक चलेगी. इसमें प्रोटेम स्पीकर चुनकर आए सदस्यों को शपथ दिलाएंगे जिसके बाद स्पीकर का चुनाव होगा. 27 जून को दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण के जरिए सरकार अपनी कार्य की दशा-दिशा बताएगी. संसदीय लोकतंत्र में सदन का चलाना सरकार की जिम्मेदारी है.
पहले से ताकतवर विपक्ष को साधना मुश्किल होगा. स्पीकर का चुनाव सर्वसम्मति से होने की परम्परा रही है, जो इस बार टूट सकती है. इसका कारण विपक्ष का यह दावा है कि संविधान के अनुच्छेद 93 में स्पीकर के साथ डिप्टी स्पीकर के चुनाव की अपरिहार्यता के बावजूद पिछली सदन के पूरे काल में यह पद सत्ता पक्ष ने खाली रखा.
पिछली लोकसभा में कई अहम बिल जैसे तीन किसान बिल, तीन तत्काल बिल और तीन नए अपराध न्याय बिल बगैर किसी चर्चा के पारित हो गए थे, जबकि संसद से रिकॉर्ड संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया.
चुनाव परिणाम के बाद से ही सत्ताधारी भाजपा ने संसद में “देश के विकास के लिए” सहमति के बारे में बात करना शुरू कर दी है. चूंकि 1977 की विपक्षी एकता के बाद यह पहली वास्तविक विपक्षी एकता है जो अस्तित्व में आई है. लिहाजा विपक्ष का रवैया शायद ही समझौतावादी हो. सरकार को पिछले सदन जैसा द्वूंद्वात्मक रवैया छोड़ना होगा.