आज से शुरू हो रहा है जैन समाज का महा पर्व पर्युषण। यह उनके सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और आत्मनिरीक्षण, स्वीकारोक्ति और दान का समय है। जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय इस त्योहार के लिए अलग-अलग तिथियों का पालन करते हैं। श्वेतांबर संप्रदाय, जिसका नाम उनके तपस्वियों के सफेद वस्त्र के नाम पर रखा गया है, यह समुदाय 1 सितंबर को त्योहार की शुरुआत करेगा, जबकि दिगंबर समुदाय 8 सितंबर से इस पर्व की शुरुवात करेगा। यह पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है।
यह वार्षिक उत्सव, जिसे पर्युषण भी कहा जाता है, पर्युषण में परि का अर्थ है चारों ओर से वहीं, उषण का अर्थ होता है धर्म की अराधना। पर्युषण का अर्थ हुआ चारों ओर से धर्म की अराधना। वर्षा ऋतु के मध्य में भाद्रपद के चंद्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी या पांचवें दिन से मनाया जाता है। यह त्योहार अनंत चतुर्दशी को समाप्त होता है। इन आठ दिनों के दौरान जैन धर्मावलंबी आत्मनिरीक्षण और आत्म-शुद्धि के माध्यम से अपनी आत्मा को तरोताजा करने का प्रयास करते हैं। इस अनुष्ठान में आत्म-नियंत्रण और वैराग्य विकसित करने के लिए आंशिक या पूर्ण उपवास शामिल है।
इस दौरान उपवास, शास्त्रों का अध्ययन, प्रार्थना और ध्यान करना कुछ ऐसे अनुष्ठान हैं। जैसे एक साधु का जीवन जी रहे हो। इस त्यौहार को मनाने के लिए मुंबई में सबसे बड़ा कार्यक्रम श्रीमद राजचंद्र मिशन द्वारा वर्ली में भारत के राष्ट्रीय खेल परिसर के गुंबद स्टेडियम में आयोजित किया जाएगा। बताया जा रहा है कि इन आठ दिनों के कार्यक्रम में , प्रवचन और ध्यान सत्र शामिल होंगे, जिनमें से कुछ का नेतृत्व संगठन के संस्थापक पूज्य गुरुदेवश्री राकेशजी करेंगे। यह संगठन श्रीमद राजचंद्र की शिक्षाओं को समर्पित है जो महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु थे।
जैन धर्म की शिक्षा देने वाले धार्मिक विद्वान मनीष मोदी ने कहा कि इस अवधि के दौरान श्रद्धालुओं से कहा जाता है कि वे कर्मकांडों में न उलझें और इसके बजाय अनुभवात्मक पहलू पर ध्यान दें, जिसमें उच्च जागरूकता, सहज शांति बनाए रखें और क्रोध, अहंकार, बनावटीपन और लोभ जैसी भावनाओं से छुटकारा पाने कोशिश करें।
त्यौहार के आखिरी दिन को संवत्सरी कहा जाता है। इस दिन जैन धर्मावलंबी आने वाले साल के लिए जैन धर्म के सिद्धांतों का पालन करने की शपथ लेते हैं। वे मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं और तीर्थंकरों से आशीर्वाद मांगते हैं।
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