तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने चुनाव नतीजों को लेकर कुछ उलटे अंदाज में संकेत किए हैं। उनकी अपनी कांग्रेस पार्टी कितनी सीटें जीतेगी, यह न बताकर उन्होंने भाजपा को मिलने वाली सीटों की संख्या की भविष्यवाणी की है। उन्होंने कहा कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को सिर्फ 125 सीटें चाहिए जबकि भाजपा को कम-से-कम 250 सीटें जीतनी होगी। रेड्डी का आशय यह था कि कांग्रेस के साथ अब कई दल हैं, जो उस पर भरोसा करते हैं। भाजपा के पास ये नहीं है। 2004 में भाजपा ने 138 सीटें जीती थीं और
कांग्रेस ने उससे मात्र सात ज्यादा, 145 सीटें जीतकर यूपीए सरकार बना ली थी, क्योंकि भाजपा के मुकाबले उसके साथ ज्यादा सहयोगी दल थे। लेकिन कोई भी पूछ सकता है कि आज कोई कांग्रेसी 125 के आंकड़े को छूने की कल्पना कैसे कर रहा है? आज के इस सबसे बड़े सवाल पर लीक से हट कर भी विचार किया जा सकता है।
वोटों की गिनती के लिए कटीब तीन सप्ताह ही बचे हैं। प्रायः हर कोई केवल भाजपा के ‘आंकड़े की बात कर रहा है। नरेंद्र मोदी ने 370 सीटों का जो लक्ष्य तय किया था, उसे भाजपा हासिल कर लेगी क्या? उसके सहयोगियों की करीब 30 सीटों के साथ क्या आंकड़ा 400 पाट हो जाएगा? भाजपा को 2019 में मिलीं 303 सीटों से 20-30 सीटें ज्यादा आएंगी या कम? क्या वे 272 के आंकड़े से भी नीचे चली जाएंगी? ऐसा लग रहा है मानो आपको पता हो कि फाइनल कौन जीतेगा, देखना बस यह है कि वो कितने रनों या विकेट से जीतेगा।
लेकिन क्या हो अगर हम समीकरण को उलट दें, और यह सवाल करें कि हाटने वाले का प्रदर्शन कैसा रहा? यह सवाल कांग्रेस और मोदी के आलोचकों को उत्तेजित कर देगा।कांग्रेस तो सबसे ऊपर नहीं आने वाली, क्योंकि वह अब तक की सबसे कम, केवल 328 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2014 और 2019 में उसे क्रमश: 44 और 52 सीटें मिली थीं और भाजपा को क्रमशः 282 और 303 सीटें। राज्य- दर-राज्य चुनाव जिस तरह संपन्न हो रहा है, हम कह सकते हैं कि अगट भाजपा को 303 के आंकड़े में और सीटें जोड़नी है तो वे एनसीपी, शिवसेना, आप, टीएमसी, बीआरएस, बीजेडी, डीएमके, वाईएसआरसीपी जैसे दलों के खाते से आनी चाहिए। कांग्रेस के खिलाफ तो वह पहले ही अधिकतम सीटें जीत चुकी है। 2019 में कांग्रेस से सीधी टक्कर वाली सीटों में से 92% पर वह जीती थी।
अब इस समीकरण को उलट दीजिए। भाजपा की जगह कांग्रेस को रखिए और देखिए कि वह वापस कितनी सीटें जीत सकती है। उत्तर में हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, टाजस्थान, एमपी, यपी, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखड से शुरु करके पश्चिम और दक्षिण की ओर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक तक चलें तो पाएंगे कि इन टाज्यों में कांग्रेस ने अपनी लगभग सारी सीटें भाजपा के हाथों गंवाई थीं। इन राज्यों की जिन 241 सीटों पर उसने चुनाव लड़ा, उनमें से 19 ही जीत पाई थी। उसके लिए अब खोने को और कुछ। नहीं है। ज्यादा संख्या में सीटें वह केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में ही जीत पाई थी, जहां उसका भाजपा से सीधा 5 मुकाबला नहीं था।
इस बाट कांग्रेस के साथ बेहतर सहयोगी हैं …
महाराष्ट्र में कांग्रेस को शिवसेना के रूप में नया सहयोगी मिल
गया है। बिहार में कांग्रेस मान टही होगी कि उसके तेजस्वी ज्यादा
मजबूत हैं। झारखंड में उसे सहयोगी का लाभ मिल सकता है। उत्तर
में कांग्रेस और आप एक साथ हैं।
इसका अर्थ यह हुआ कि मोदी-भाजपा के विजय टथ को टोकने का दारोमदार कांग्रेस पर ही है। जितनी भी सीटें वह जीतेगी, भाजपा के कुल आंकड़े में उतने की कटौती ‘करेगी। उसे 125 सीटें लाने की भी जरूटत नहीं है क्योंकि 90 सीटें ही काफी होंगी। समीकरण सीधा-सा है। कांग्रेस का आंकड़ा अगर 80 पर पहुंचता है तो भाजपा के 2019 के आंकड़े में 25-30 सीटें की कमी आएगी। भाजपा और उसके समर्थक बेशक यह कह सकते हैं कि उसे ओडिशा, बंगाल, तेलंगाना और आंध्र में गैट-कांग्रेसी दलों से फायदा मिल रहा है। उनका दावा सही भी हो सकता है, लेकिन इसके उलट भाजपा को ठाकरे, शरद पवार, तेजस्वी यादव की पार्टियों की ओर से दबाव का सामना भी करना पड़ रहा है। तर्क के लिए हम कह सकते हैं कि कांग्रेस की 52 सीटों में अगर 10 और सीटें भी जुड़ गईं तो यह भाजपा के लिए 10 सीटों का नुकसान ही होगा। औट अगट वह 90 के आंकड़े पर पहुंच गई तो वह भाजपा को 272 के आंकड़े से नीचे ही रोक सकती है और कहीं उसे 100 सीटें मिल गईं तब तो टाष्ट्रीय टाजनीति में उथल-पुथल हो जाएगी।
या इसे दूसरी तरह से देखें। भाजपा को करीब 30 सीटें और मिल गई तो उसका आंकड़ा 330 के पाट भी जा सकता है, लेकिन इससे अगली सरकार की मजबूती में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन 30 सीटें कम हो गईं तो उसके बड़े नतीजे हो सकते हैं। यह स्थिति केवल तभी आ सकती है जब कांग्रेस अपने खाते में कम-से-कम 30 या इससे ज्यादा सीटें जोड़ती है। कांग्रेस को मिलने वाली 70 से ज्यादा एक-एक सीट राष्ट्रीय राजनीति के संतुलन को बदल सकती है। यह पार्टी चाहे जो भी दावे कर रही हो, उसके सामने यही सबसे बड़ा सवाल है। खासकर इसलिए कि इनमें से अधिकतर सीटों पर उसे भाजपा को परास्त कटने की चुनौती होगी। 2019 में दोनों दलों के वोट प्रतिशत में जो अंतर था, उससे जाहिट है कि कांग्रेस को बड़े घाटे से शुरुआत करनी है। सवाल यह है कि उसे जो 30 और सीटें चाहिए, वे कहां से हासिल होंगी? वह उन राज्यों पर नजर डालेगी, जहां 2019 में उसने भाजपा के हाथों सब कुछ गंवा दिया था, लेकिन जहां इस बार वह किसी गठबंधन में शामिल है या जहां उसकी अपनी मजबूत राज्य सरकाट है। ऐसे टाज्यों में कर्नाटक और तेलंगाना के नाम पहले आते हैं!