हमारे बिहार में आजकल धड़ाधड़ पुल गिर रहे हैं. यूट्यूब वाले पत्रकार एक पुल के गिटने पर वीडियो बनाते हैं. तबतक दूसरा गिर जाता है. वे दूसरे तक पहुँचते हैं तबतक तीसरा गिर जाता है. लगता है पुल और युट्यूबर्स में दौड़ लगी है, कि कौन आगे है.
पुल गिटने की खबर हम इतनी बार सुन चुके हैं कि अब कुछ भी गिरता है तो लगता है कि कोई पुल ही गिटा है. हालांकि गिटने के लिए तो एयरपोर्ट की छत भी गिर रही है, सूट बूट वाले बाबा के चटणों में उनके भक्त गिर रहे हैं, फेसबुक पर देशवादियों की टीच गिर रही है, जेल में केजरीलाल जी के आंसू गिर रहे हैं, पर इन सब के बावजूद चर्चा केवल बिहार के पुल पा रहे हैं. मैं इसे बिहार का सौभाग्य मानता हूं.
एक आम भारतीय होने के नाते मैं जानता हूँ कि कोई पुल एक झटके में नहीं गिरता. गिटने की प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही होती है. सबसे पहले नेता गिरते हैं, फिर अधिकारी गिरते हैं, उसके बाद इंजीनियर गिरता है. इन तीनों के गिटने से फिसलन हो जाती है सो ठेकेदार भी गिर जाता है. बात यहीं नहीं रुकती, इस फिसलन को देख कर आम जनता भी खुद को रोक नहीं पाती, देखादेखी वह भी गिरने लगती है.
आपने यदि ठेकेदार के स्टॉक से गिट्टी, बालू, मसाला चुटाती जनता को नहीं देखा तो शर्म कीजिये, धिक्कार है आपके भारतीय होने पर … हाँ तो जब इतने लोग गिर जाते हैं तो पुल को भी अपने खड़े होने पर शर्म आने लगती है। तो अपने निर्माताओं का साथ देने के लिए वह भी गिर जाता है. बात खत्म …
सच कहूँ तो हमारे देश में गिरना कभी लज्जा का विषय नहीं रहा. व्यक्ति जितना गिरता है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ती जाती है. खुसरो कह गए कि जो प्रेम के दरिया में डूबता है वही पार जाता है. ठीक वैसे ही, हमारे देश में जो गिरता है वही ऊपर जाता है. वैसे प्रेम में भी आदमी एक तरह से गिरता ही है. खुसरो कितना गिरे थे, यह हमें नहीं पता.
आप फेसबुक इंस्टा पर ही देख लीजिये, जो जितना ही गिरता/गिरती है, उसका रील उतना ही वायरल होता है. सिनेमा की कोई अभिनेत्री जितना गिरती है, उतना ही आगे बढ़ती जाती है. यहाँ तक कि एक लेखक भी जबतक गिरता … छोड़िये.
मैं कल एक मित्र से बातचीत कर रहा था. मित्र मुझे पुल गिटने के लाभ बता रहे थे. उन्होंने मुझे अर्थशास्त्र समझाते हुए बताया कि जब पुल गिटेगा, तभी न दुबारा बनेगा. दुबारा बनेगा तो मजदूरों को काम मिलेगा। सीमेंट, बालू, सरिया के रोजगारियों का धंधा चलेगा. नेता, अधिकारी कमीशन खाएंगे तो पैसा मार्किट में ही न देंगे! इस तरह पैसा घूम फिर कर जनता तक ही जायेगा, सो पुलों का गिटना जनता के लिए लाभदायक है. मित्र जिस कॉन्फिडेंस से मुझे समझा रहे थे उससे स्पष्ट हो गया कि वे भी कम गिरे हुए नहीं हैं.
हमारे देश में हर व्यक्ति अब गिटना चाहता है. वह केवल मौका तलाश रहा है. कब मौका मिले कि वह गिरे … पुल अकेले नहीं हैं, गिरने की यात्रा में सारा देश उनके साथ चल रहा है.
एक बात और कहूँ? यह तो नदियों के दोनों तटों को जोड़ने वाले पुल हैं दोस्त! हमारे यहाँ तो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले पुल कबके ढह गए हैं. हम जब उसपर दुखी नहीं हुए तो इसपर क्या ही होंगे. है न?